मुंबई, 29 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अपने बयान में कहा कि अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021-22 में 25 साल से कम उम्र के 42 फीसदी ग्रेजुएट बेरोजगार थे। जनवरी 2023 में, 8,000 उम्मीदवारों ने गुजरात विश्वविद्यालय में क्लर्क के 92 पदों के लिए आवेदन किया। इनमें एमएससी और एमटेक वाले भी शामिल थे। जून 2023 में महाराष्ट्र में क्लर्क के 4,600 पदों के लिए 10.5 लाख लोगों ने आवेदन किया। इनमें एमबीए, इंजीनियर और पीएचडी होल्डर्स भी शामिल थे। जयराम रमेश के अनुसार, औपचारिक क्षेत्र में पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने में मोदी सरकार की घोर विफलता के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के 2021-22 के आंकड़ों से पता चलता है कि औपचारिक क्षेत्र में रोजगार, 2019-20 की तुलना में 5.3 फीसदी कम हैं। इसके अलावा 2019-20 से 2021-22 तक औपचारिक क्षेत्र में रोजगार देने वालों की संख्या में भी 10.5 फीसदी की भारी गिरावट आई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 और मार्च 2023 के बीच मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की नौकरियों में 31 फीसदी की गिरावट आई है। जनवरी-मार्च 2023 के नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में भी 50 फीसदी से कम श्रमिक वेतनभोगी हैं।
नवीनतम अखिल भारतीय पीएलएफएस डाटा, जिसमें ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल है, बहुत चिंताजनक है। इसके मुताबिक 2021-22 में केवल 21 फीसदी श्रमिकों के पास ही औपचारिक नौकरियां थी, जो अभी भी 23 फीसदी की महामारी-पूर्व अवधि से कम है। इसके बजाय, स्व-रोजगार और अनौपचारिक रोजगार में वृद्धि हुई है। जयराम रमेश के मुताबिक, ये आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार की विनाशकारी आर्थिक नीतियों और बिना किसी प्लानिंग के किए गए लॉकडाउन ने वास्तव में शिक्षित युवाओं के लिए औपचारिक रोजगार के अवसरों को कम कर दिया है। मोदी सरकार में सार्वजनिक क्षेत्र के सिकुड़ने के कारण यह स्थिति और भी बदतर होती जा रही है। अगस्त 2022 तक केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 9.8 लाख पद खाली थे। सीएमआईई के डाटा से पता चलता है कि 2015-16 और 2022-23 के बीच सरकारी नौकरियों में 20 फीसदी की कमी आई है। भारत में अब प्रति 1000 जनसंख्या पर सार्वजनिक कर्मचारियों की संख्या सबसे कम है। यह संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील और यहां तक कि चीन से भी कम है।
उन्होंने आगे कहा, मोदी सरकार रोजगार संकट से निपटने के बजाय आंकड़ों को छिपाने, तोड़-मरोड़ कर पेश करने और तरह-तरह की नौटंकी करने में व्यस्त है। ईपीएफओ डाटा से सामने आ रहे स्थिर वार्षिक अनुमानों पर भरोसा करने के बजाय, वे गैर भरोसेमंद मासिक डाटा का प्रचार-प्रसार करने में लगे हैं। वे जानबूझकर इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं कि मासिक डाटा को कई बार 50 फीसदी से भी अधिक तक संशोधित किया जाता है। इसमें बड़ी खामियां होती हैं। एक आरटीआई डाटा से पता चलता है कि रोजगार मेलों में सभी जॉब लेटर्स को नई भर्तियों के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, लेकिन इनमें एक बड़ी संख्या वास्तव में सिर्फ पदोन्नति है।