विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कच्चाथीवू मसले पर की प्रेस कॉन्फ्रेंस, जानिए पूरा मामला

Photo Source :

Posted On:Monday, April 1, 2024

मुंबई, 01 अप्रैल, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कच्चाथीवू मसले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और डीएमके ऐसा दिखा रही हैं कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है और यह अभी अभी का मसला है। जबकि, उन्होंने ही इसे अंजाम दिया था। जनता को ये जानने का अधिकार है कि 1974 में कच्चाथीवू को कैसे दे दिया गया। डीएमके लीडर और तब के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि को भी इस समझौते की पूरी जानकारी थी। यह समझौता संसद में रखा गया। तब के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह जी ने 23 जुलाई 1974 को संसद को भरोसा दिलाया था। मैं उन्हीं का स्टेटमेंट पढ़ रहा हूं, जो कहता है, मुझे विश्वास है कि दोनों देशों के बीच सीमाओं का निर्धारण बराबरी से हुआ है, ये न्यायसंगत है और सही है। स्वर्ण सिंह जी ने आगे कहा था, मैं सभी सदस्यों को याद दिलाना चाहता हूं कि इस समझौते को करते वक्त दोनों देशों को भविष्य में मछली पकड़ने, धार्मिक कार्य करने और नौकाएं चलाने का अधिकार रहेगा। 2 साल के भीतर ही इंडिया और श्रीलंका के बीच एक और समझौता हुआ था। इस मसले पर मैंने मौजूदा मुख्यमंत्री को 21 बार जवाब दिया है।

एस जयशंकर ने आगे कहा, कच्चाथीवू और मछुआरों के मसले पर अब कांग्रेस और डीएमके इस तरह का व्यवहार कर रही हैं कि उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है और आज की केंद्र सरकार इस मसले को हल करे। जैसे इसका कोई इतिहास नहीं है, जैसे ये अभी हुआ है। कांग्रेस और डीएमके वे लोग हैं, जो इस मसले को उठा रहे हैं। पिछले 20 साल में 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका ने पकड़ा। भारत की मछली पकड़ने वाली 1175 नावें सीज की गईं। जब भी कोई गिरफ्तारी होती है, जो ये लोग मुद्दा उठाते हैं। चेन्नई में बैठकर बयान देना आसान है, लेकिन उन मछुआरों को कैसे छुड़ाया जाता है, ये हम जानते हैं। हम आज 2 एग्रीमेंट की बात कर रहे हैं। हमने 2 दस्तावेज देखे। RTI के जरिए ये दस्तावेज हमें मिले। विदेश मंत्रालय की 1968 की एक कमेटी की रिपोर्ट है। दूसरा दस्तावेज तब के विदेश सचिवों और तब के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बीच हुई बातचीत का रिकॉर्ड है, जून 19, 1974 का है। उन्होंने कहा कि मई 1961 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था, 'मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी।' उनका रवैया ऐसा था कि जितना जल्दी कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया जाए, उतना बेहतर होगा। यही नजरिया इंदिरा गांधी का भी था।

आपको बता दें, इंडिया और श्रीलंका ने 1974 में एक समझौता किया, जिसके जरिए दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा का निर्धारण हुआ। इस सीमा को तय करते वक्त कच्चाथीवू को श्रीलंका में दे दिया गया। इस समझौते की 3 और कंडीशन थीं।

  1. दोनों देशों का अपनी जल सीमा पर पूरा अधिकार और संप्रभुता होगी।
  2. कच्चाथीवू का इस्तेमाल भारतीय मछुआरे भी कर सकेंगे और इसके लिए किसी ट्रैवल डॉक्यूमेंट की आवश्यकता नहीं होगी।
  3. भारत और श्रीलंका की नौकाएं एक-दूसरे की सीमा में वो यात्राएं कर सकेंगी जो वो परंपरागत रूप से करती आ रही हैं।


नागपुर और देश, दुनियाँ की ताजा ख़बरे हमारे Facebook पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें,
और Telegram चैनल पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



You may also like !

मेरा गाँव मेरा देश

अगर आप एक जागृत नागरिक है और अपने आसपास की घटनाओं या अपने क्षेत्र की समस्याओं को हमारे साथ साझा कर अपने गाँव, शहर और देश को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो जुड़िए हमसे अपनी रिपोर्ट के जरिए. nagpurvocalsteam@gmail.com

Follow us on

Copyright © 2021  |  All Rights Reserved.

Powered By Newsify Network Pvt. Ltd.