मुंबई, 9 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली 23 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता मुज्जादार इकबाल खान की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने जिरह शुरू की। इसे बाद में सीनियर एडवोकेट जफर शाह ने जारी रखा। इससे पहले तीन दिन 8, 3 और 2 अगस्त को एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें दी थी। सुब्रमण्यम ने कहा कि विलय के समय जम्मू-कश्मीर किसी अन्य राज्य की तरह नहीं था। उसका अपना संविधान था। हमारे संविधान में विधानसभा और संविधान सभा दोनों को मान्यता प्राप्त है। मूल ढांचा दोनों के संविधान से निकाला जाएगा। डॉ. अंबेडकर ने संविधान के संघीय होने और राज्यों को विशेष अधिकार की बात कही थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के पास अनकंट्रोल्ड पावर नहीं है। आर्टिकल 370 के खंड 1 के तहत शक्ति का उद्देश्य आपसी समझ पर आधारित है। जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच यह व्यवस्था संघवाद का एक समझौता थी। संघवाद एक अलग तरह का सामाजिक अनुबंध है। 370 इस संबंध का ही एक उदाहरण है। इस संघीय सिद्धांत को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत ही पढ़ा जाना चाहिए। इसे निरस्त नहीं किया जा सकता है। धारा 370 संविधान के प्रोविजन का एप्लीकेशन है।
सुब्रमण्यम ने पूछा क्या जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को संविधान बनाने का काम नहीं सौंपा गया था। इस पर CJI ने कहा 1957 के बाद न तो जम्मू-कश्मीर की विधानसभा और न ही देश की संसद ने जम्मू-कश्मीर संविधान को स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान के दायरे में लाने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन करने के बारे में कभी सोचा। इस पर सुब्रमण्यम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का संविधान जम्मू-कश्मीर के लिए है। यह एक संविधान है क्योंकि इसे एक संविधान सभा ने बनाया था। जम्मू-कश्मीर संविधान में संशोधन करने की शक्ति केवल उस निकाय के पास हो सकती है जिसे संविधान सभा ने बनाया हो। यही नियम है। इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा जब हमने 1954 के आदेश के पहले भाग को पढ़ा तो यह स्पष्ट हो गया कि जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान को अपवादों और संशोधनों के साथ अपनाया गया था। आप इसे जम्मू-कश्मीर का संविधान कह सकते हैं लेकिन जो अपनाया गया वह भारतीय संविधान था। आर्टिकल 370 बहुत फ्लक्सीबल है। आम तौर पर संविधान समय और स्थान के साथ फ्लक्सीबल होते हैं क्योंकि वे एक बार बनते हैं लेकिन लंबे समय तक बने रहते हैं। यदि आप 370 को देखें, तो यह कहता है कि इसमें संशोधन किया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर पर लागू होने वाले भारत के संविधान में जो कुछ भी हो रहा है उसे आत्मसात कर लिया जाए।
सुब्रमण्यम ने कहा 370 की एकतरफा व्याख्या करना संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होगा। इसके बाद सीनियर एडवोकेट जफर शाह ने जिरह शुरू की। उन्होंने कहा कि आर्टिकल 370 को समझने के लिए अलग-अलग एप्रोच हैं। जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने जब भारत के साथ संधि की तो उन्होंने रक्षा, संचार और विदेश मामलों के अलावा बाकी शक्तियां अपने पास रखीं। इसमें संप्रभुता की शक्ति यानी कानून बनाने की शक्ति भी शामिल है। वह दो देशों के बीच संधि थी।महाराजा चाहते तो पूरी तरह जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आर्टिकल 370 जम्मू-कश्मीर और भारत के बीच विशेष रिलेशनशिप है। भारत का संविधान उस राज्य के साथ क्या करता है जिसका विलय नहीं हुआ है, बल्कि जिसने भारत के संविधान को स्वीकार किया है। इस पर CJI ने कहा आगे गुरुवार को सुनवाई करेंगे।