मुंबई, 22 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि दहेज जैसी बुराई को समाज से खत्म करने के लिए IPC की धारा 498A को लाया गया था, लेकिन इसके गलत इस्तेमाल ने कानूनी आतंकवाद (लीगल टेररिज्म) को बढ़ा दिया है। जस्टिस सुभेंदु सामंत ने एक महिला की उसके ससुराल पक्ष के खिलाफ याचिका रद्द करते हुए कहा कि इसे महिलाओं के कल्याण के लिए लाए थे, लेकिन अब इसके झूठे मामले ज्यादा आ रहे हैं। इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है।
कोर्ट ने कहा, महिला की याचिका में शारीरिक और मानसिक यातना का आरोप साधारण लग रहा है। गवाहों के बयान ऐसे किसी तथ्य का खुलासा नहीं करते, जिसमें आरोपी पति को फंसाया जा सकता है। केस डायरी के मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन में भी महिला के शरीर पर किसी चोट का जिक्र नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक पड़ोसी ने पति-पत्नी के झगड़े के बारे में सुना बस है। दो व्यक्तियों के झगड़े का मतलब यह नहीं है कि कौन हमलावर था या कौन पीड़ित। दहेज प्रथा का मामला केवल निजी दुश्मनी निकालने के लिए लगाया गया है। इसलिए मौजूदा हालात के तहत याचिका रद्द करना ही सही है, नहीं तो केस जारी रखना अदालत के वक्त की बर्बादी होगी।
दरअसल, पति से अलग रह रही एक महिला ने पहली बार अक्टूबर 2017 में पति के खिलाफ मानसिक और शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था। इसके बाद पुलिस ने कुछ गवाहों और पड़ोसियों के बयान दर्ज किए, लेकिन अदालत ने इन्हें काफी नहीं माना। महिला ने दिसंबर 2017 में एक और शिकायत दर्ज की। इस बार उसने पति के परिजन का नाम लेते हुए उन पर क्रूरता करने और मानसिक-शारीरिक यातना देने का आरोप लगाया था।