मुंबई, 17 सितम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) "बच्चे हैं, गलती करेंगे ही" — यह सोच अक्सर भारतीय माता-पिता को अपने बच्चों को मुश्किलों से बचाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन क्या होगा अगर हम बच्चों को उनकी गलतियों से खुद सीखने दें? "एफएएफओ पेरेंटिंग" (FAFO Parenting) नामक यह नया ट्रेंड इसी विचार पर आधारित है, जिसका मतलब है "फ अराउंड एंड फाइंड आउट" यानी "गलती करो और उसका परिणाम भुगतो"। यह एक ऐसा तरीका है जो बच्चों को प्राकृतिक परिणामों के माध्यम से जवाबदेही, लचीलापन और बेहतर निर्णय लेने की कला सिखाता है।
यह पेरेंटिंग स्टाइल माता-पिता को बार-बार सलाह देने या बच्चों से मोलभाव करने की थकान से मुक्ति दिलाता है। मान लीजिए, एक बच्चा समय पर खाना नहीं खाता और उसका खाना ठंडा हो जाता है। एफएएफओ पेरेंटिंग के तहत, माता-पिता उसे गर्म करने के बजाय ठंडा खाना खाने देते हैं, जिससे बच्चा अगली बार समय का महत्व समझता है। यह कोई लापरवाही नहीं है, बल्कि बच्चे पर यह भरोसा जताना है कि वह अपनी गलतियों से सीख सकता है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, एफएएफओ पेरेंटिंग के सिद्धांत जीन पियाजे और लेव वायगोत्स्की जैसे प्रसिद्ध विचारकों के सिद्धांतों से मेल खाते हैं, जिन्होंने सक्रिय रूप से खोज करके सीखने पर जोर दिया था। हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह तरीका केवल तभी काम करता है जब असफलता के बाद माता-पिता बच्चे को डांटने या शर्मिंदा करने के बजाय प्यार और सहानुभूति से मिलते हैं।
यह आधुनिक पेरेंटिंग स्टाइल हमारे पुराने मुहावरे "जैसी करनी, वैसी भरनी" का ही एक नया रूप है। यह उन माता-पिता के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो अक्सर बच्चों को हर तरह की कठिनाई से बचाना चाहते हैं। हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह तरीका हर स्थिति में लागू नहीं होता, खासकर जब बच्चे की सुरक्षा खतरे में हो।
निष्कर्ष यह है कि एफएएफओ पेरेंटिंग का सही संतुलन खोजना ज़रूरी है। बच्चों को खुद से सीखने देना और साथ ही, उनके प्रति दयालु और सहयोगी बने रहना ही एक सफल और आत्मनिर्भर बच्चे के निर्माण की कुंजी है।