गीता फोगाट का जन्म 15 दिसंबर, 1988 को हरियाणा में भिवानी ज़िले के छोटे से गाँव बलाली के हिन्दू-जाट परिवार में हुआ था, जो अपने पिता से विरासत में मिली पहलवानी को आगे बढ़ा रही हैं। गीता फोगाट की माँ दया कौर एक गृहणी हैं। परिवार में गीता की तीन बहनें बबीता, रितु, संगीता और एक भाई दुष्यंत हैं। गीता और बबीता पहले ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर की महिला पहलवान हैं और रितु अभी अपने पिता से पहलवानी का प्रशिक्षण ले रही हैं। साथ ही गीता की सबसे छोटी बहन संगीता और भाई दुष्यंत भी पहलवानी के रास्ते पर हैं। गीता के पिता पेशे से एक ग्रीक-रोमन स्टाइल के पहलवान हैं, जो कभी मेट पर तो कभी मिट्टी में ही पहलवानी कर लिया करते हैं। वे एक द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्तकर्ता हैं और गीता फोगाट के कोच भी हैं। अपनी पहलवानी से अच्छे-अच्छे पहलवानों के छक्के छुड़ाने वाले महावीर सिंह फोगाट धन से ग़रीब थे, पर लड़कियों के प्रति विचारों को लेकर धनी हैं।
जब महावीर फोगाट की पहली संतान बेटी रत्न गीता फोगाट के रूप में हुई और एक वर्ष एक महीने के बाद दूसरी बेटी रत्न बबीता फोगाट का जन्म हुआ तो महावीर सिंह फोगाट ने लड़कों-लड़कियों में भेदभाव ना करते हुए निश्चय किया कि वे उन्हें लड़कों की तरह पहलवान बनाएँगे। गीता फोगाट की बहन बबीता कुमारी और उसके चचेरे भाई विनेश फोगाट भी राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता हैं। गीता फोगाट की एक और छोटी बहन रितु फोगाट भी एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पहलवान हैं और 2016 राष्ट्रमंडल कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं।
पहलवानी का सफ़र
पाँच वर्ष के होते ही गीता फोगाट के पिता ने गीता फोगाट और बबीता फोगाट को पहलवानी का प्रशिक्षण देने लगे। शुरुआत में गीता फोगाट के पिता उन्हें दौड़ लगवाने के लिए खेतों में ले जाते थे। धीरे-धीरे समय निकलता गया तो अभ्यास कठिन होता चला गया। महावीर फोगाट लड़कों के साथ ही अपनी बेटियों को दौड़ करवाते और दांव-पैच सिखाते थे। अगर वे लड़कों से दौड़ करते समय कमज़ोर पड़ जातीं तो महावीर सिंह फोगाट गुस्सा भी काफ़ी करते थे। इतनी कठिन अभ्यास के कारण गीता हार भी मान जातीं थी।
जैसे-जैसे गीता और बबीता फोगाट बड़ी होने लगीं तो जमाना उनका सहयोग करने के बजाय अजीब-अजीब मुंह बनाने लगा। कई बार वे ऐसे सोचते थे भी कि "अगर हम किसी दूसरे अखाड़े या और स्टेडियम में होते तो पापा जैसा कोच मिल जाता तो हम कभी भी वापस वहाँ नहीं जाते घर ही आ जाते। कई बार तो हम को लोगों से विरोध और धमकियाँ भी मिलती थीं।"
पर हम सभी अपने पथ पर पूर्ण विश्वास के साथ डटे रहे। उन्हीं दिनों 2000 के सिडनी ऑलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कर्णम मल्लेश्वरी ने वेट लिफ्टिंग में भारत के लिये कास्य पदक जीतीं, जो ऑलंपिक्स में किसी भी भारतीय महिला खिलाड़ी का पहला पदक था। गीता फोगाट के पिता एक जुनूनी कोच थे, जिससे वो अपने पिता से काफ़ी परेशान हो जाती थीं। इतनी कड़े अभ्यास के बाद महावीर सिंह फोगाट, गीता और बबीता को बड़े-बड़े अखाड़े में कुश्ती के मुक़ाबले के लिए ले जाने लगे। पर पुरुषवादी खेल के लोगों ने उनका साथ नहीं दिया और उन्हें बेटियों को ना खिलाने की हिदायत भी दे डाली। पर महावीर सिंह फोगाट रुके नहीं। बल्कि उन्होंने अपनी बेटियों को आगे के अभ्यास के लिए स्पोर्ट्स ऑथोरीटी ऑफ इंडिया में दाखिला दिला दिया। बचपन में मिट्टी में खूब पसीना बहाने वाली गीता और बबीता में वहाँ के कोचों को जल्द ही टैलेंट दिखा और वे उन्हें आधुनिक ट्रेनिंग देने लगे।
राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता
मेहनत का सुनहरा परिणाम 2009 में आया, जब गीता ने इतिहास रचते हुए जालंधर कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतीं, जो ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान थीं। इसी तरह 2010 के न्यू दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में लगातार सोने का तमगा जीतकर गीता फोगाट ने यह साबित कर दिया कि यदि किसी लक्ष्य के लिए जी-तोड़ मेहनत की जाए तो जमाना भी आपके आड़े नहीं आ सकता। अब गीता के जीत का यह आलम था कि वो 2012 के वर्ल्ड रेस्टलिंग चैंपियशिप में ताँबे का तमगा, 2013 के कॉमनवेल्थ गेम्स में रजक पदक और 2015 के एशियन चैंपियनशिप में कास्य पदक जीतीं। 18 अक्तूबर 2016, मंगलवार को हरियाणा कैबिनेट की मंजूरी पर गीता फोगाट के अंतर्राष्ट्रीय खेलों में योगदान के बदले हरियाणा पुलिस का डिप्टी सुपरिनटेंडेंट बनाया गया।