मध्य पूर्व (मिडिल ईस्ट) एक बार फिर राजनीतिक और सैन्य हलचलों के केंद्र में है। हाल ही में इजरायल द्वारा कतर की राजधानी दोहा पर किए गए हवाई हमले ने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया है। इसी के साथ, अब एक बार फिर ‘Arab NATO’ (अरब नाटो) की मांग जोर पकड़ रही है। इस गठबंधन की चर्चा कोई नई नहीं है, लेकिन मौजूदा हालात में इसका फिर से ज़िक्र होना कई देशों के लिए चिंता और संभावनाओं दोनों का कारण बन गया है — खासतौर पर भारत के लिए।
क्या है 'Arab NATO'?
‘Arab NATO’ एक प्रस्तावित सैन्य गठबंधन है, जिसे 2015 में मिस्र ने पहली बार दुनिया के सामने पेश किया था। उस समय यमन संकट चरम पर था, ISIS का उदय हो चुका था और मध्य पूर्व अस्थिरता से जूझ रहा था। तभी मिस्र ने यह विचार रखा कि अरब और मुस्लिम देशों का एक सैन्य गठबंधन होना चाहिए, जो क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करे और आतंकी संगठनों से निपटे।
हालिया घटनाएं और फिर से उठती मांग
दोहा पर इजरायल के हमले के बाद, 40 से अधिक मुस्लिम देशों के नेताओं ने आपातकालीन अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन में इस विचार को फिर से समर्थन दिया। उनका मानना है कि क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए अब केवल कूटनीति काफी नहीं है, बल्कि संयुक्त सैन्य ताकत की जरूरत है।
संभावित सदस्य देश
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ‘Arab NATO’ में 22 देशों के शामिल होने की संभावना है, जिनमें शामिल हैं:
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सऊदी अरब
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यूएई
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कतर
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कुवैत
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बहरीन
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ओमान
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मिस्र
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जॉर्डन
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इराक
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पाकिस्तान
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तुर्की
पाकिस्तान और तुर्की की भागीदारी विशेष ध्यान खींचती है, क्योंकि इन दोनों की पहचान कट्टरपंथी रुख के साथ की जाती है।
Arab NATO का उद्देश्य
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आतंकवाद के खिलाफ एकजुट कार्रवाई
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ईरान के प्रभाव को संतुलित करना
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मिडिल ईस्ट में स्थायित्व और सैन्य संतुलन बनाए रखना
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साझा सैन्य अभ्यास और तकनीकी सहयोग
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संयुक्त कमांड सेंटर का गठन
भारत के लिए फायदे
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ऊर्जा सुरक्षा: भारत अपनी तेल जरूरतों का लगभग 80% हिस्सा मध्य पूर्व से आयात करता है। एक स्थिर अरब दुनिया भारत के लिए लाभकारी होगी।
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आतंकवाद विरोधी सहयोग: अगर गठबंधन ISIS और अन्य आतंकी नेटवर्क को कमजोर करता है, तो इसका अप्रत्यक्ष फायदा भारत को मिलेगा।
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रणनीतिक साझेदारी: भारत पहले ही UAE, सऊदी और कतर जैसे देशों से रक्षा और व्यापार समझौते कर चुका है, जो इस गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।
भारत के लिए संभावित नुकसान
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पाकिस्तान का सैन्य सशक्तिकरण: अगर पाकिस्तान इस गठबंधन का हिस्सा बनता है, तो उसे सैन्य संसाधनों, हथियारों और प्रशिक्षण का लाभ मिलेगा, जो भारत के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकता है।
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राजनयिक संतुलन में कठिनाई: भारत की नीति ‘सभी से दोस्ती’ की रही है। लेकिन अगर अरब देश एक खेमे में बंधते हैं, तो भारत को उनके साथ संतुलन बनाना मुश्किल हो सकता है।
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ईरान से संबंधों पर असर: भारत-ईरान के संबंध ऐतिहासिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। अरब NATO के ईरान-विरोधी रुख से भारत के ईरान से रिश्ते बिगड़ सकते हैं।
निष्कर्ष
‘Arab NATO’ एक रणनीतिक गेमचेंजर बन सकता है, लेकिन इसका अमलीजामा पहनना फिलहाल चुनौतीपूर्ण है। भारत को इस संभावित गठबंधन को संतुलन और समझदारी से देखना होगा — ताकि वह अपने आर्थिक हितों, ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय कूटनीति के संतुलन को बनाए रख सके। आने वाले सालों में अगर यह गठबंधन मूर्त रूप लेता है, तो भारत के सामने नए अवसरों और चुनौतियों का मिश्रण होगा।