हर अभिनेता अपनी जिंदगी के उस दौर में आता है जहां उसे अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना ही पड़ता है. अगर नहीं निकला तो मामला गड़बड़ हो जाता है और कब इस मायावी दुनिया में उसकी नाम-पहचान धुंधली पैड जाए पता नहीं चलता. कार्तिक आर्यन इस समय इन सब चीजों से कोसो दूर हैं उनके पास फिल्मों की लाइन्स हैं. उनमें बहुत संभावनाएं भी हैं. लेकिन इसके बावजूद उन्हें कम्फर्ट जोन से बाहर तो आना ही था और वो आए. कोशिश की एक अलग तरह की फिल्म में चैलेंजिंग किरदार निभाने की. आइए जानते हैं नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘धमाका’ (Dhamaka Review) में आर्यन की कोशिश कामयाब हुई? क्या फिल्म में इतनी ताकत है कि वो दर्शकों की उम्मीदों का बोझ झेल पाए?
कहानी-
फिल्म की कहानी एक ऐसे टीवी एंकर की है जो अभी एक रेडियो एंकर की भूमिका में है. उसे किसी कारण से 5 साल के सफल टीवी एंकर के करियर के बावजूद प्राइम-टाइम से हटा दिया गया है. वो अपने करियर और पर्सनल लाइफ में बहुत उलझा हुआ है. दोनों ही चीजों को सुलझा पाने में खुद को असहाय महसूस करता है. उसे एक कॉल आता है जिसमें सी लिंक पर धमाका होने की बात कही जाती है.
इसके बाद एक नाटकीय घटना के बाद उसे वापस बुलाया जाता है और उसे उसकी जगह वापस मिलती हैं लेकिन कुछ शर्तें होती हैं. उस रघुबीर नामक इंसान की बात सच साबित हो जाती है और धमाका होता है. उस आदमी से जब उसकी डिमांड पूछी जाती है जब वो बताता है कि उसे मंत्री जयदेव पाटिल का पूरे देश के सामने माफी चाहिए. आखिर क्यों रघुबीर नाम का शख्स मंत्री से माफी चाहता है? उसका उद्देश्य क्या है? उनका अर्जुन पाठक से क्या लेना देना है? इन्हीं सवालों का जवाब देती है कार्तिक आर्यन की फिल्म ‘धमाका.’
धमाका ऐसी फिल्म है जो टेरर को फोकस में रख कर कई बातें दर्शकों के बीच लेकर आती है. चाहे वो सामाजिक या राजनैतिक व्यवस्था हो या मीडिया की व्यवस्था हो. कई तरह के सोच को खुद में समाहित करके एक निर्णायक फैसले के साथ दर्शकों तक पहुंचाने को कोशिश करती है. ये फिल्म शुरू से अंत तक कोशिश की करती रह जाती है. इसमें ग्रिप कहीं गायब सा नजर आता है. कई जगहों कुछ चीज़ें आपको कचोटती हैं. वास्तविकता से परे दिखाई पड़ती है. सहूलियत के हिसाब से कहानी को सरल बना दिया गया है.
अभिनय-निर्देशन
अभिनय की बात की जाए तो अर्जुन पाठक के रोल में कार्तिक अच्छे नजर आ रहे हैं. उन्होंने भी कोशिश की है पर कामयाबी शत प्रतिशत नहीं मिल पाई है. पर हाँ उनके प्रयास को खारिज कर देना भी ठीक नहीं. हमेशा रोमांटिक किरदार में नजर आए कार्तिक के लिए ये करैक्टर नया है. मृणाल ठाकुर धमाकों के बीच सहमी हुई नजर आईं, उनका किरदार भी और उस किरदार में नजर आईं मृणाल भी कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई हैं.
निर्देशन ने तो बहुत निराश किया है. राम माधवानी ने इसके पहले नीरजा बनाई थी वहां एक असली कहानी थी तो कहानी में दम नजर आया था. यहां काल्पनिक कहानी है जिसमें बिखराव नजर आया है. वीएफएक्स भी बहुत कमजोर है. ये एक कोरियन फिल्म ‘द टेरर लाइव’ की रिमेक है. गाने अच्छे हैं वो पहले ही लोगों ने पसंद किए हैं.
देखें या न देखें-
ये फैसला हमेशा आपका अपना होना चाहिए लेकिन फिर हम आपको निष्कर्ष बात देते हैं. कार्तिक आर्यन की कोशिश के लिए इसे देख सकते हैं. घर पर टाइम पास नहीं हो रहा है, नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन है तो भी इसे देख ही सकते हैं. ना देखने के कई वाजिब कारण हैं जो ऊपर गिना चुका हूं.