वेब सीरीज रिव्यु - Jubilee
गोल्डन एरा का ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ दौर और उस रंगीन दुनिया के काले सच को बड़ी बारीकी और समझदारी से दर्शाती है विक्रमादित्य मोटवानी की नई वेब सीरीज ‘जुबली’
जब भी बॉलीवुड के गोल्डन पीरियड की बात होती है एक अलग जुनून की बात होती है. एक अलग तड़प की बात होती है. एक अलग दीवानगी की बात होती है. हुनर की खदान में एक से बढ़कर एक कोहिनूर आए और गए. लेकिन उन्होंने सिनेमा को रोशन कर दिया, बॉलीवुड ने लोगों को खुश रहने का जरिया दिया. बड़े पैमाने पर लोगों का मनोरंजन होता आया है. कैसे ब्लैक एंड व्हाइट पर्दे के पीछे की रंगीन दुनिया पनपी थी जो देशभर के लोगों को एक अलग ही लोक में लेकर जा रही थी और उस रंगीन दुनिया के पीछे का काला सच जो प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए जरूरी था. इन सभी को बड़ी बारीकी और समझदारी से दर्शाती है विक्रमादित्य मोटवानी की प्राइम वीडियो पर आई नई वेब सीरीज ‘जुबली.’
ये एक ऐसी वेब सीरीज है जो उस दौर में लेकर चली जाएगी जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ग्रो कर रही थी. उस दौर में जहां एक तरफ हुनरमंद लोग अपना दिन-रात कुछ अलग कर दिखाने के जुनून में जाया कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ कई सारे लोग ऐसे भी थे जो फिल्मों में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जा पाने के लिए तैयार थे.
हुनर की आड़ में रिश्तों-नातों और भावनाओं की ठगी इंडस्ट्री की पहचान रही है. ऐसे में ये वेब सीरीज आपको सिनेमा और उस पर्दे के पीछे के नजारों का ऐसा जायका देगी जिसे शायद आपने कभी भी प्रत्यक्ष रूप से महसूस नहीं किया होगा. क्योंकि ये उन दिनों की बात है.
'जुबली' की कहानी
विक्रमादित्य मोटवानी की वेब सीरीज 'जुबली' की कहानी हिंदी सिनेमा के गोल्डन एरा में बसी है। 'जुबली' 1940 के दशक में सिनेमा की जादुई दुनिया को दिखाती है, जब सिल्वर स्क्रीन पर टॉकीज के कल्चर का बोलबाला था। कहानी दिखाती है कि कैसे एक आदमी देश का अगला सुपरस्टार बनने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। स्टारडम की उसकी यह यात्रा, कुछ चौंकाने वाले और तबाही वाले परिणाम लेकर आती है।
'जुबली' की कहानी को बड़े ही प्यार, जुनून, राजनीति, नफरत और गला-काट प्रतियोगिता के इर्द-गिर्द बुना गया है। यह सब सेपिया-टोंड फ्रेम में किसी कविता की शूट किया गया है। एक ऐसा दौर जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे थे। रॉय टॉकीज के मालिक श्रीकांत रॉय (प्रोसेनजीत चटर्जी) अपने अगले पोस्टर बॉय और सुपरस्टार मदन कुमार की तलाश कर रहे हैं। उनके पास प्रतिभा को पहचानने के लिए बाज की नजर है। वह सामने वाले को देखकर उसके मन को पढ़ने की काबिलयत रखते हैं। श्रीकांत रॉय की जिंदगी में बहुत करीबी लोग नहीं हैं। एक बीवी है, जिसका नाम सुमित्रा है और वह एक सुपरस्टार है। एक स्पॉटबॉय भी है बिनोद दास (अपारशक्ति खुराना), जो छोटे शहर से है, चतुर-चालाक है। बिनोद की बीवी है रत्ना (श्वेता बसु प्रसाद) और एक बेटा है।
कहानी आजादी से पहले के भारत की है, ऐसे में पाकिस्तान अभी भी हिंदुस्तान का हिस्सा है। लेकिन लंबे समय तक ऐसा नहीं रहता, क्योंकि अब देश का बंटवारा होने वाला है। सिनेमा और रेडियो, देश में मनोरंजन और सूचना के लिए सिर्फ यही दो जन माध्यम हैं। इन सबके बीच, एक तवायफ नीलोफर कुरैशी (वामिका गब्बी) है और एक शरणार्थी लड़का जय खन्ना (सिद्धांत गुप्ता), जिसकी जिंदगी भी श्रीकांत रॉय से टकराती है। जय को भी एक एक्टर और फिल्ममेकर बनना है, लेकिन वह जिंदगी बदल देने वाली एक घटना में फंस जाता है।
कैसा रहा डायरेक्शन?
इस वेब सीरीज का डायरेक्शन हर किसी के बस की बात नहीं. इस कहानी को पर्दे पर गढ़ने के लिए पर्दे का ज्ञान जरूरी है. कहानी के बिना कहानी बन नहीं सकती. विक्रम ने इस वेब सीरीज के सीन्स को ऐसे दिखाया है जैसे मानों आप 50 के दशक की किसी फिल्म की शूटिंग लाइव देख रहे हैं जिसे आप अबतक दरअसल ब्लैक एंड व्हाइट में देखते आए थे.
कैसी रही एक्टिंग?
पर्दे पर नेचुरल दिखना आज के वक्त की मांग है. उस दौर में ऐसा नहीं था. उस दौर में उस बनावटीपने की जरूरत थी जो रियल लाइफ में नहीं नजर आती थी. क्योंकि उसकी जरूरत ही नहीं थी. ऐसे में जय खन्ना के रोल में सिद्धांत गुप्ता और निलोफर के रोल में वामिका गब्बी ने दिग्गजों की गरिमा का खयाल रखा और बिल्कुल इंसाफ किया. सभी कलाकारों ने उस दौर के अंदाज को अपने अभिनय में बरकरार रखा और इसी वजह से ये फिल्म एकदम जीवंत नजर आती है. राम कपूर, अरुण गोविल, अपारशक्ति खुराना, अदिति रॉव हैदरी और प्रसनजीत चटर्जी अपने-अपने रोल में लाजवाब थे.
कैसा है म्यूजिक?
अमित त्रिवेदी तो एक जबरदस्त म्यूजिशियन हैं हीं. लेकिन इस वेब सीरीज में अपने शानदार संगीत से उन्होंने सभी का दिल जीत लिया है. इस बैकड्रॉप पर जैसा म्यूजिक बनता आया है उसका यहां पर भरपूर ध्यान रखा गया है. जहां एक तरफ वेब सीरीज में जितने भी गानें हैं उनमें ओपी नय्यर की मस्तानी धुन का जायका मिलेगा तो वहीं दूसरी तरफ नौशाद की संजीदगी का भी खासा ख्याल रखा गया है. और ये धुनें समा बांध देने वाली लिरिक्स के बगैर तो मुमकिन भी ना हो पातीं.
क्यों देखें ये वेब सीरीज?
अगर आपको सिनेमा से प्यार है और इसके पीछे की दुनिया की दुनिया को देखना चाहते हैं। कुछ ऐसा काल्पनिक देखने का दिल है, जो आपको सुनहरे दौर में लेकर जाए, बेहतरीन परफॉर्मेंस से सजी हुई हो, तो 'जुबली' आपके लिए एक जबरदस्त सौगात है।