नागपुर न्यूज डेस्क: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक अहम फैसले में कहा कि जब कोई महिला 'ना' कहती है, तो इसका मतलब सिर्फ 'ना' होता है। महिला की पिछली यौन गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यह टिप्पणी कोर्ट ने गैंगरेप के तीन दोषियों की सजा को बरकरार रखते हुए दी। जस्टिस नितिन सूर्यवंशी और एम डब्ल्यू चांदवानी की बेंच ने इन तीनों को अपनी महिला साथी के साथ बलात्कार करने का दोषी पाया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने तीन दोषियों की सजा कम करने की अपील को खारिज कर दिया। साथ ही, अपीलकर्ताओं द्वारा पीड़िता की नैतिकता पर सवाल उठाने के तर्क को भी अस्वीकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने इनकी उम्र कैद की सजा को घटाकर 20 साल कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि महिला के 'ना' कहने का मतलब स्पष्ट रूप से 'ना' ही होता है और किसी भी महिला के अनैतिक गतिविधियों के आधार पर सहमति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब महिला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं, तो यह न केवल उसके शरीर पर बल्कि उसके मानसिक और निजी अधिकारों पर भी हमला होता है। रेप को केवल एक यौन अपराध नहीं माना जा सकता, बल्कि यह एक आक्रामकता से जुड़ा अपराध है। कोर्ट ने बलात्कार को समाज में सबसे निंदनीय अपराध बताते हुए कहा कि यह पीड़ित के शरीर, मन और निजता पर हमला है।
मामले में दोषी व्यक्तियों ने दावा किया था कि महिला पहले एक के साथ यौन संबंधों में थी, लेकिन बाद में उसने अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप शुरू कर दिया था। नवंबर 2014 में तीनों आरोपियों ने महिला के घर में घुसकर उसके लिव-इन पार्टनर पर हमला किया और महिला के साथ बलात्कार किया। अदालत ने यह भी कहा कि भले ही महिला किसी के साथ मर्जी से रह रही हो, इसका यह मतलब नहीं कि कोई भी व्यक्ति उसे बिना सहमति के बलात्कारी रूप से यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर कर सकता है।