नागपुर न्यूज डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में आयोजित एक खास कार्यक्रम के दौरान संगठन और जीवन के गहरे मूल्यों पर विचार साझा किए। वे संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी रहे मोरोपंत पिंगले की स्मृति में आयोजित एक बुक विमोचन समारोह में बोल रहे थे। कार्यक्रम में उन्होंने मोरोपंत के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें साझा करते हुए कहा कि इंसान को 75 साल की उम्र के बाद दूसरों के लिए जगह बनानी चाहिए। यही मोरोपंत का जीवन दर्शन था, और संघ में भी उन्होंने यही परंपरा स्थापित की।
मोहन भागवत ने बताया कि एक बार वृंदावन में हुई संघ की बैठक में जब मोरोपंत 75 वर्ष के हुए, तो उन्हें शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। उस समय उन्होंने खुद कहा था – "मैं 75 का अर्थ समझता हूं", यानी अब मुझे संन्यास लेना चाहिए और कार्य की जिम्मेदारी युवाओं को सौंप देनी चाहिए। भागवत ने इसे एक अहम सीख बताया कि प्रचार से दूर रहकर कैसे सच्चे मन से काम किया जा सकता है।
भागवत ने यह भी बताया कि आपातकाल के बाद जब देश में राजनीति में उथल-पुथल थी, तब मोरोपंत ने बड़ी सटीक भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था कि यदि सभी विपक्षी दल एक साथ आ जाएं तो वे 276 सीटें जीत सकते हैं — और बाद में जब परिणाम आए तो ठीक इतनी ही सीटें मिलीं। मोरोपंत उस समय सतारा जिले के एक किले में थे, दूर तमाम राजनीतिक हलचलों से। यह उनके निर्लिप्त जीवन का उदाहरण है।
राम जन्मभूमि आंदोलन में भी मोरोपंत ने खुद को आगे न रखते हुए अशोक सिंघल को नेतृत्व में रखा। भागवत ने कहा कि मोरोपंत ने कभी प्रसिद्धि नहीं चाही, बल्कि सेवा और त्याग को ही जीवन का उद्देश्य बनाया। उन्होंने अपने आचरण से यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे कार्यकर्ता का काम ही उसकी पहचान होता है, न कि उसका चेहरा अखबारों में आना।