क्या है ट्रंप का ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल एक्ट’? सीनेट में मामूली अंतर से पास, अब आगे क्या

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Posted On:Wednesday, July 2, 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में है और इस बिल को लेकर देश में जबरदस्त राजनीतिक हलचल मची हुई है। बिल को लेकर ट्रंप और एलन मस्क के बीच टकराव ने इसे और भी विवादास्पद बना दिया है। मंगलवार देर रात इस बिल को अमेरिकी सीनेट में बेहद तंग वोटिंग से पारित किया गया, जिसमें 50-50 वोटिंग के बाद उपराष्ट्रपति जेडी वेंस के मत से बिल को मंजूरी मिली। आइए विस्तार से जानते हैं इस बिल के मुख्य प्रावधान, विवाद और आगे की संभावनाएं।

क्या है ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल’?

‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ दरअसल ट्रंप प्रशासन द्वारा पेश एक महत्वाकांक्षी कर छूट और सरकारी खर्च कटौती विधेयक है। इस बिल का मकसद अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना, टैक्स दरों में कमी लाना और सरकारी खर्चों को सीमित करना है। बिल के कुछ अहम प्रावधानों में शामिल हैं:

  • 2017 के टैक्स कट्स एंड जॉब्स एक्ट को स्थायी करना ताकि कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत कर दरों में कटौती बनी रहे।

  • ओवरटाइम वेतन, टिप्स और सामाजिक सुरक्षा आय पर 15% तक कर कटौती।

  • सीमा सुरक्षा के लिए फंडिंग और सैन्य खर्च में वृद्धि।

  • विदेशी रेमिटेंस टैक्स का प्रावधान, जिसमें गैर-अमेरिकी नागरिकों द्वारा विदेश में भेजे गए धन पर 3.5% से 5% तक कर लगाना शामिल है। यह खासतौर पर भारत जैसे देशो के लिए चिंता का विषय बन गया है।

इस बिल का उद्देश्य सरकारी खर्चों में कटौती करके निजीकरण को बढ़ावा देना और नौकरशाही में सुधार लाना है।

ट्रंप और एलन मस्क के बीच विवाद

इस बिल को लेकर सबसे बड़ा विवाद अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच देखने को मिला। मस्क ने इस बिल को ‘कर्ज और गुलामी वाला बिल’ बताते हुए इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने नई “अमेरिका पार्टी” बनाने की धमकी भी दी। हालांकि बाद में मस्क और ट्रंप के बीच सुलह की खबरें आईं, लेकिन मस्क ने अभी तक बिल का समर्थन नहीं किया है।

मस्क का विरोध खासतौर पर इस बात को लेकर है कि बिल में हेल्थ प्रोग्राम्स में भारी कटौती की गई है। अनुमान है कि करीब 1.2 करोड़ गरीब और दिव्यांग नागरिकों की स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, बिल के तहत 996 लाख करोड़ रुपये के स्वास्थ्य कार्यक्रमों की कटौती की गई है, जिससे कमजोर वर्गों को नुकसान हो सकता है।

सीनेट में मतदान और विरोध

मंगलवार देर रात सीनेट में इस बिल पर वोटिंग के दौरान तीखी बहस हुई। रिपब्लिकन पार्टी के कुछ सदस्यों ने बिल का समर्थन किया, जबकि डेमोक्रेट्स ने इसका जमकर विरोध किया। रिपब्लिकन के तीन सदस्यों — थॉम टिलिस, सुसान कॉलिन्स और रैंड पॉल ने भी बिल का विरोध किया। वोटिंग 50-50 रही, जिसके बाद उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपना तटस्थ वोट देकर बिल को पारित कर दिया।

बिल के पारित होने के बाद आगे क्या?

अब यह बिल हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में भेजा जाएगा। वहां दोनों सदनों के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए एक सम्मेलन समिति बनाई जा सकती है। यदि दोनों सदन बिल के अंतिम संस्करण पर सहमत हो जाते हैं तो इसे राष्ट्रपति ट्रंप के पास भेजा जाएगा, जहां उनका हस्ताक्षर इसे कानून बना देगा। अगर राष्ट्रपति इसे वीटो करते हैं तो दोनों सदनों को दो-तिहाई बहुमत से इसे फिर से पारित करना होगा।

भारत पर रेमिटेंस टैक्स का असर

इस बिल में विदेशी रेमिटेंस टैक्स का प्रावधान भारत जैसे देशों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। इस नियम के तहत अमेरिका में काम करने वाले भारतीयों द्वारा विदेश भेजे गए पैसों पर 3.5% से 5% तक कर लगेगा, जिससे भारत को आर्थिक नुकसान हो सकता है। यह प्रावधान खासतौर पर उन देशों को प्रभावित करेगा जिनकी अर्थव्यवस्था विदेशी मुद्रा पर निर्भर करती है।

राजनीतिक तनाव और भविष्य की चुनौतियां

‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ की मंजूरी के बाद भी इसके विरोध में राजनीतिक तनाव जारी रहेगा। मस्क जैसे प्रभावशाली उद्योगपतियों का विरोध और डेमोक्रेटिक पार्टी का कड़ा रुख बिल की प्रगति में बाधक बन सकता है। वहीं, बिल के कई प्रावधानों से प्रभावित गरीब और मध्यम वर्ग भी इसका विरोध कर सकते हैं।

निष्कर्ष

डोनाल्ड ट्रंप का ‘वन बिग ब्यूटीफुल बिल’ अमेरिकी राजनीति का एक अहम मोड़ है, जो देश के आर्थिक और सामाजिक तंत्र को बदलने की क्षमता रखता है। इस बिल की मंजूरी से सरकार के खर्च में कटौती और टैक्स दरों में कमी आएगी, लेकिन साथ ही कई सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर भी असर पड़ेगा। एलन मस्क और अन्य विरोधी इसके संभावित नकारात्मक प्रभावों को लेकर सतर्क हैं। अब देखना होगा कि बिल को हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में कितनी समर्थन मिलती है और इसका अंतिम रूप कैसा होगा।
इस विवाद और बहस के बीच अमेरिका के अगले आर्थिक और सामाजिक नीतियों का स्वरूप तय होगा, जो न सिर्फ अमेरिका बल्कि विश्व की अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव डालेगा।


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