Dev Deepawali 2025: आज, 5 नवंबर 2025, कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को 'देव दीपावली' का पावन पर्व मनाया जा रहा है। यह केवल एक धार्मिक तिथि नहीं है, बल्कि उस दिव्य विजय का उत्सव है जब स्वयं देवताओं ने काशी के गंगा घाटों पर उतरकर दीपदान किया था। काशी (वाराणसी) की 84 घाटों पर लाखों दीये जलने से उत्पन्न होने वाला यह स्वर्गीय दृश्य, आस्था, आध्यात्मिकता और भारत की प्राचीन संस्कृति का भव्य संगम प्रस्तुत करता है। (लगभग 80 शब्द)
त्रिपुरारी पूर्णिमा: शिव की विजय का महाउल्लास
देव दीपावली का सबसे गहरा संबंध भगवान शिव की एक महान विजय से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस ने तीनों लोकों पर अत्याचार कर रखा था। उसे ब्रह्मा जी से वरदान मिला था कि वह तभी मारा जाएगा जब सभी ग्रह एक पंक्ति में आएं और उसे एक ही बाण से मारा जाए। त्रिपुरासुर के आतंक से त्रस्त देवताओं ने जब महादेव की शरण ली, तब भगवान शिव ने विकराल 'त्रिपुरारी' रूप धारण किया।
कार्तिक पूर्णिमा की शुभ तिथि पर, भगवान शिव ने अपने दिव्य रथ पर सवार होकर, एक ही बाण से त्रिपुरासुर के तीन अभेद्य नगरों (त्रिपुरों) को भस्म कर दिया और उसका वध किया। इस धर्म की विजय के उपलक्ष्य में, समस्त देवी-देवताओं ने प्रसन्न होकर धरती पर दीये जलाए और उल्लास मनाया। इसीलिए इस तिथि को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की शाश्वत जीत का प्रतीक है।
गंगा घाटों पर देवताओं का आगमन और दीपदान
यह माना जाता है कि त्रिपुरासुर वध के बाद सभी देवता काशी में ही अवतरित हुए और उन्होंने गंगा नदी के तटों पर दीपदान किया। यही कारण है कि देव दीपावली का सबसे भव्य और अलौकिक आयोजन वाराणसी में होता है। शाम होते ही, जब प्रदोष काल (शाम 5:15 बजे से 7:50 बजे तक) में लाखों मिट्टी के दीये (दिए) गंगा के घाटों पर सजाए जाते हैं, तो ऐसा लगता है मानो स्वयं तारे धरती पर उतर आए हों .
मुख्य रस्म: इस पर्व की मुख्य रस्म दीपदान है—पवित्र गंगा में तेल के दीये प्रवाहित करना। यह दीपदान न केवल देवी गंगा का सम्मान है, बल्कि यह माना जाता है कि एक दीप का प्रकाश भी समस्त पापों का हरण कर आत्मा को शुद्ध करता है।
भव्य आयोजन: दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट और पंचगंगा घाट जैसे प्रमुख घाटों पर विशेष गंगा आरती का आयोजन होता है, जिसमें मंत्रोच्चार, शंख ध्वनि और तालबद्ध नगाड़ों की गूंज से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
लक्ष्मी-विष्णु की कृपा और गृह-सुख
हालांकि देव दीपावली मुख्य रूप से भगवान शिव की विजय से जुड़ी है, यह दिन कार्तिक पूर्णिमा होने के कारण भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को भी समर्पित है। कार्तिक मास भगवान विष्णु की पूजा के लिए पवित्र माना जाता है, और पूर्णिमा तिथि का सीधा संबंध धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से है।
घर पर दीपदान: जो भक्त काशी नहीं पहुँच पाते, उनके लिए घर पर भी दीपदान का विशेष महत्व है। इस दिन घर के पाँच स्थानों पर दीये जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है:
मुख्य द्वार: सुख-समृद्धि के स्वागत के लिए।
रसोई में जल स्थान के पास: अन्नपूर्णा देवी की कृपा के लिए।
तुलसी के पौधे के पास: भगवान विष्णु के आशीर्वाद के लिए।
घर के पास शिव मंदिर में: महादेव की प्रसन्नता के लिए।
ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा): घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता लाने के लिए।
लाभ: इन स्थानों पर दीप जलाने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और धन-धान्य की कमी नहीं होती। देव दीपावली हमें सिखाती है कि भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों प्रकार के अंधकार को केवल ज्ञान और भक्ति के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है।
।।भगवान विष्णु की आरती।।
ॐ जय जगदीश हरे आरती
ॐ जय जगदीश हरे...
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे...
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे...
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे...
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे...
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे...
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे...
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे...
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे...
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे...
॥आरती श्री लक्ष्मी जी॥
ॐ जय लक्ष्मी माता,मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत,हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी,तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी,सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत,ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि,तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी,भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता,मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते,वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव,सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर,क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मी जी की आरती,जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता,पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥