Guru Nanak Jayanti 2025: आज का दिन सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जा रहा है। कार्तिक पूर्णिमा की यह पावन तिथि सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि मानवता के लिए सत्य, समानता और निस्वार्थ सेवा के उनके शाश्वत संदेशों को पुनर्जीवित करने का एक अवसर है। सदियों पहले दिए गए उनके उपदेश आज भी एक भ्रमित दुनिया को राह दिखाने की क्षमता रखते हैं। आइए, इस पावन गुरुपर्व पर, उनके 'गुरबाणी' की गहराई में उतरकर, उनके वचनों के नए और मौलिक अर्थों को समझने का प्रयास करें।
'इक ओंकार': समानता और एकता का मौलिक विचार
गुरु नानक देव जी का पहला और सबसे महत्वपूर्ण वचन है: "ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह सृष्टिकर्ता है, वह भय रहित है, शत्रुता रहित है।" यह केवल धार्मिक घोषणा नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी सामाजिक दर्शन है। आज के समय में, जब दुनिया जाति, धर्म और राष्ट्र के आधार पर बंटी हुई है, 'इक ओंकार' (ईश्वर एक है) का सिद्धांत हर मानव को समान मानने की सीख देता है। यह हमें बताता है कि यदि परम सत्ता एक है, तो हम सभी उसी एक परम सत्ता की संतान हैं। इस सार्वभौमिक एकता को अपनाने का अर्थ है—भेदभाव की सभी दीवारों को तोड़ना। यह सिखाता है कि प्रेमभाव और भाईचारा ही सच्चे सुख की कुंजी है, और जब हम यह जान लेते हैं कि 'एक ही प्रकाश सबमें समाया है,' तब किसी से शत्रुता या नफ़रत का कोई कारण नहीं बचता।
'किरत करो': श्रम की गरिमा और ईमानदारी की अर्थव्यवस्था
गुरु जी का दूसरा वचन, जो आज के पूंजीवादी युग में सबसे अधिक प्रासंगिक है: "लोभ का त्याग कर अपने हाथों से मेहनत कर धन प्राप्त करना चाहिए।" इसे केवल एक व्यक्तिगत नैतिकता नहीं, बल्कि एक ईमानदार आर्थिक प्रणाली का आधार समझना चाहिए। गुरु नानक देव जी ने 'किरत करो' (ईमानदारी से श्रम करो) का सिद्धांत देकर 'श्रम की गरिमा' को स्थापित किया। वे सिखाते हैं कि चोरी, धोखा या दूसरों का हक छीनकर कमाया गया धन केवल अस्थिरता और बेचैनी लाता है। आज की भाग-दौड़ भरी दुनिया में, यह वचन हमें याद दिलाता है कि सच्ची समृद्धि भौतिक धन में नहीं, बल्कि स्वयं के पसीने और ईमानदारी में निहित है। यह वचन भ्रष्टाचार और अनैतिक व्यापारिक प्रथाओं पर एक सीधा प्रहार है।
'वंड छको': निस्वार्थ सेवा और सामाजिक जिम्मेदारी
तीसरा महत्वपूर्ण वचन है: "अपनी कमाई का कुछ हिस्सा गरीब लोगों को दान करना चाहिए।" यह साधारण दान की बात नहीं है, बल्कि 'वंड छको' (साझा करो और खाओ) का सिद्धांत है। यह एक स्थायी सामाजिक मॉडल है जहाँ धन का संचय नहीं, बल्कि उसका वितरण होता है। गुरुपर्व के अवसर पर आयोजित होने वाले 'लंगर' इसी भावना का प्रतीक हैं—जहाँ अमीर और गरीब, राजा और रंक एक ही पंगत (पंक्ति) में बैठकर भोजन करते हैं। यह उपदेश हमें सिखाता है कि धन को हृदय से नहीं, बल्कि जेब तक सीमित रखें, यानी धन को केवल आवश्यकता की पूर्ति का साधन समझें, न कि अहंकार या शक्ति का स्रोत। जरूरतमंदों के लिए निस्वार्थ सेवा (सेवा) आपके जीवन में न केवल सकारात्मकता लाती है, बल्कि आपको सच्चे 'मानवतावादी पूंजीपति' की श्रेणी में खड़ा करती है।
'हउमै' का त्याग: आत्म-परिवर्तन की कुंजी
गुरु नानक देव जी ने कहा: "मनुष्य का अहंकार ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन है।" यहाँ 'अहंकार' (हउमै) का अर्थ केवल घमंड नहीं, बल्कि 'मैं' (ego) की भावना है जो हमें ईश्वर और अन्य मनुष्यों से अलग करती है। यह अहंकार ही सभी सामाजिक और व्यक्तिगत बुराइयों का मूल है। यह वचन आज के 'स्व-केंद्रित' समाज को एक आईना दिखाता है। गुरु जी की सीख है कि विनम्रता ही सच्चा ज्ञान है। जब हम अपने ज्ञान, धन या पद का अहंकार करते हैं, तो हम सीखने और विकसित होने के सभी रास्ते बंद कर देते हैं। विनम्रता वह कुंजी है जो हमें सच्चे सुख और ईश्वरीय चेतना के करीब ले जाती है, क्योंकि यह हमें स्वीकार करवाती है कि हम सब एक बड़े ब्रह्मांड का एक छोटा सा हिस्सा हैं।
'सो क्यों मंदा आखिए': नारी सम्मान की शाश्वत घोषणा
अंत में, गुरु जी का नारी सम्मान से जुड़ा यह वचन आज भी गूंजता है: "सो क्यों मंदा आखिए, जित जमहिं राजान। (उसे क्यों बुरा कहें, जिससे राजा-महाराजा जन्म लेते हैं।)" यह वचन सदियों पहले, एक पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के लिए समानता और सम्मान की सबसे बुलंद घोषणा थी। गुरु नानक देव जी ने स्पष्ट किया कि स्त्री और पुरुष, दोनों बराबर हैं। उन्होंने न केवल महिला के अनादर का खंडन किया, बल्कि उन्हें सम्मान और पूजा की पात्र बताया। यह सिखाता है कि किसी भी समाज की उन्नति और चरित्र का आकलन इस बात से होता है कि वह अपनी महिलाओं को कितना सम्मान देता है।
प्रकाश पर्व का आधुनिक संकल्प
गुरुपर्व सिर्फ गुरु नानक देव जी के जन्म का उत्सव नहीं है; यह उनके उपदेशों को हमारे दैनिक जीवन में लागू करने का संकल्प लेने का दिन है। 'इक ओंकार' से 'किरत करो' और 'वंड छको' तक, गुरु वाणी हमें एक ऐसे समाज का नक्शा देती है जो समानता, ईमानदारी और निस्वार्थ सेवा पर आधारित हो। आज, जब दुनिया जटिलताओं से घिरी है, गुरु नानक देव जी का सरल और सीधा संदेश—"सत्य सबसे ऊपर है, लेकिन सच्चा जीवन उससे भी ऊपर है"—ही हमारे लिए सबसे बड़ा 'प्रकाश' है।