नागपुर न्यूज डेस्क: मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए हर दिन खास किस्म के गुब्बारे आसमान में भेजे जाते हैं, जिन्हें 'वेदर बलून' या 'रेडियोसॉन्ड' कहा जाता है। इन गुब्बारों में लगे आधुनिक उपकरणों से हवा की गति, दिशा, नमी और तापमान जैसी जानकारी मिलती है। देश के सभी मौसम केंद्र इन गुब्बारों को हर दिन सुबह 4 बजे और शाम 4:30 बजे छोड़ते हैं, ताकि ऊपरी वायुमंडल की स्थिति का पता लगाया जा सके।
ये गुब्बारे हाईड्रोजन गैस से भरे होते हैं और हवा में करीब 30 से 50 किलोमीटर तक ऊपर जाते हैं। सुबह छोड़ा जाने वाला 750 ग्राम का गुब्बारा अधिक ऊंचाई तक जाता है, जबकि शाम को छोड़ा जाने वाला 350 ग्राम वाला गुब्बारा थोड़ा कम ऊंचाई पर रुकता है। हवा में उड़ते हुए ये गुब्बारे फैलते जाते हैं और एक तय सीमा के बाद फट जाते हैं। इसके बाद इनमें लगे उपकरण धरती पर कहीं गिर जाते हैं।
गुब्बारों में थर्मिस्टर, जीपीएस और अन्य सेंसर लगे होते हैं जो ऊपरी वातावरण की जानकारी मौसम विभाग तक पहुंचाते हैं। इन संकेतों को डिकोड करके मौसम का पूर्वानुमान तैयार किया जाता है। जब गुब्बारा बहुत ऊंचाई पर पहुंचकर फटता है, तो उसका उपकरण किसी जंगल, नदी या बस्ती में गिर सकता है, जिससे लोगों को इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए।
एक वेदर बलून को आसमान में भेजने की लागत करीब 12 से 15 हजार रुपये आती है। यानी हर दिन लगभग 25 से 30 हजार रुपये खर्च होते हैं। पहले मौसम का अंदाजा केवल पायलट बैलून से लगाया जाता था, जिससे सिर्फ हवा की दिशा और गति पता चलती थी। लेकिन अब रेडियोसॉन्ड तकनीक के जरिए वैज्ञानिकों को हवा की नमी, तापमान और अन्य जरूरी डाटा भी मिल रहा है, जिससे भविष्यवाणी अधिक सटीक हो गई है।